मंत्रिमंडल विस्तार करने से कतरा रहे उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह

18 सितंबर को त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद संभाले साढ़े तीन साल पूरे हो जाएंगे. लेकिन अगला डेढ़ साल बड़ा चुनौतीपूर्ण रहने वाला है.

मंत्रिमंडल विस्तार करने से कतरा रहे उत्तराखंड  के सीएम त्रिवेंद्र सिंह

उत्तराखंड भले ही छोटा सा राज्य है लेकिन राजनीति गतिविधियों के मामले में बेहद सक्रिय रहा है. सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पिछले कुछ महीनों से राज्य में विकास योजनाओं को लेकर बेहद सक्रिय नजर आ रहे हैं. लेकिन अपने मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर वे हमेशा पीछे हटते रहे हैं. काफी समय से त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं लेकिन हर बार यह आगे के लिए टाल दी जाती है.


त्रिवेंद्र सरकार में दो मंत्री पद तो सरकार के गठन से ही खाली पड़े हैं, वहीं पिछले जून माह में भाजपा के कद्दावर मंत्री प्रकाश पंत के निधन के बाद से एक मंत्री पद और खाली हो गया है. तीन मंत्री पदों को भरने के लिए हालांकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अभी फिलहाल कुछ नहीं कह रहे हैं. लेकिन पिछले दिनों उन्होंने संकेत दिए हैं कि अपना मंत्रिमंडल विस्तार नवरात्र में कर सकते हैं.


हालांकि उत्तराखंड में मंत्रिमंडल विस्तार के लिए अभी अक्टूबर तक इंतजार करना होगा. राज्य में मंत्रिमंडल विस्तार की देरी पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत का कहना है कि यह मामला मुख्यमंत्री के कार्यक्षेत्र का है और इसलिए यह उन पर ही छोड़ दिया गया है. वह जब वे ठीक समझेंगे, विस्तार करेंगे. यहां हम आपको बता दें कि 2 सितंबर से 17 सितंबर तक श्राद्ध पक्ष है, फिर 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिमास (मलमास) है. आमतौर पर श्राद्ध और अधिकमास में शुभ काम अच्छे नहीं माने जाते हैं.


18 सितंबर को त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद संभाले साढ़े तीन साल पूरे हो जाएंगे. लेकिन अगला डेढ़ साल बड़ा चुनौतीपूर्ण रहने वाला है. ऐसा हम इसलिए भी कह रहे हैं कि उत्तराखंड में सिर्फ नारायण दत्त तिवारी को छोड़ दें तो और किसी भी नेता ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है. 


बीते जून महीने में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलने की अटकलें उत्तराखंड में तेज हो गई थी. अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर भाजपा में ज्यादातर नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत से वरिष्ठ हैं. सतपाल महाराज हों या विजय बहुगुणा, मदन कौशिक या रमेश पोखरियाल निशंक सब कद्दावर और वरिष्ठ नेता हैं. बता दें, उत्तराखंड से भाजपा के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी अगर बीमार न पड़े होते तो वह त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भारी पड़ सकते थे.