NASA के मिशन मंगल में अहम रोल निभाने वालीं स्वाति बोलीं- काम में थी इतनी मगन कि जश्न मनाना ही भूली
‘टचडाउन कर्न्फम्ड’. इसके बाद नासा के कंट्रोल रूम समेत दुनियाभर में खुशी की लहर दौड़ गई. यह उदघोषणा करने वाली थीं- भारतीय मूल की अमेरिकी वैज्ञानिक स्वाति मोहन
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA Mars Rover Landing) ने गुरुवार देर रात इतिहास रच दिया. पर्सेवरेंस रोवर (Perseverance Rover) ने मंगल ग्रह की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की. इस ऐतिहासिक लम्हे को सफल बनाने के लिए नासा के विशेषज्ञों की टीम दिन-रात जुटी हुई थी. गुरुवार को भी कंट्रोल रूम में सभी दिल थाम कर बैठे थे. तभी एक घोषणा हुई, ‘टचडाउन कर्न्फम्ड’. इसके बाद नासा के कंट्रोल रूम समेत दुनियाभर में खुशी की लहर दौड़ गई. यह उदघोषणा करने वाली थीं- भारतीय मूल की अमेरिकी वैज्ञानिक स्वाति मोहन
माथे पर बिंदी के साथ धैर्य से पर्सीवरेंस के हर स्टेप की घोषणा करती स्वाति नासा में गाइडेंस, नेविगेशन और कंट्रोल्स ऑपरेशन की प्रमुख हैं। पूरे मिशन को सफल बनाने में उनका अहम योगदान रहा. नासा मिशन के लिए लैंडिंग और डिजाइनिंग तकनीक को भारत की बेटी स्वाति मोहन ने ही विकसित किया है.स्वाति जब एक साल की थीं, तभी उनके परिजन अमेरिका चले गए थे।
स्वाति के ऊपर मार्स रोवर परसिवरेंस को सही जगह पर उतारने और इसके लिए एकदम सही जगह का चयन करने की जिम्मेदारी थी. वो केवल इसी मिशन के साथ जुड़ी नहीं रही है, बल्कि इससे पहले वो शनि ग्रह पर भेजे गए कासिनी यान और नासा के चांद पर भेजे गए ग्रेविटी रिकवरी एंड इंटीरियर लैबोरेटरी (ग्रेल) यान से भी जुड़ी रह चुकी हैं.
नासा के रोवर परसिवरेंस मिशन को लेकर स्वाति कुछ बीते दिनों में कुछ ट्वीट भी किए हैं. इनमें से एक ट्वीट में उन्होंने लिखा कि वो काफी बिजी शडयूल के बाद और काफी देर तक काम करने के बाद घर जा रही हैं. इसके बाद उन्होंने इसकी लैंडिंग की उलटी गिनती कर रही एक क्लॉक की फोटो भी ट्वीट की थी. रोवर की मार्स पर लैंडिंग से पहले उन्होंने लिखा कि अपनी टीम की मांग पर उन्होंने अपने बालों को ऐसा रूप दिया है.
अपने वैज्ञानिक बनने और नासा से जुड़ने की बात का खुलासा करते हुए एक बार उन्होंने कहा था, कि वो जब 9 वर्ष की थीं तब टीवी पर आने वाले प्रोग्राम स्टार ट्रेक को बेहद मन से देखा करती थीं. इससे उन्हें ब्रह्मांड के नए खुलासे करने का मन करता था. उन्हें ये जानने में अच्छा लगता था, कि पृथ्वी से करोड़ों किमी दूर भी कुछ है. यहां से उन्हें ब्रह्मांड को खंगालने की धुन सवार हुई थी. उन्हें लगने लगा था कि उन्हें भी इस ब्रह्मांड के नए सवालों का जवाब तलाशने हैं. जब वो 16 वर्ष की थीं तब उनके दिमाग में पैड्रीटिशियन बनने का ख्याल आया. लेकिन इसी दौरान उन्हें मिले फिजिक्स के टीचर की बदौलत उनके मन में दोबारा इंजीनियर बनने का ख्याल मन में आया था. इसके बाद उनकी दिलचस्पी स्पेस एक्सप्लोरेशन में बढ़ती ही चली गई.
सक्सेस स्टाेरी
मैं कहूंगी कि अपने पैशन काे पूरा करें और उस पर डटे रहें। ऐसी काेई एक उपलब्धि या काेई अनुभव नहीं है जाे आपकाे ताेड़ दे या आपकाे सफल बना दे। सफलता हो या नाकामी, यह इस पर निर्भर करता है कि उससे आप क्या सीखते हैं और उस अनुभव काे आप किस तरह से लेते हैं। यह आपके आगे बढ़ने में बहुत मदद करता है।