आर्थिक गतिविधियों के लिए एक और आर्थिक पैकेज की ज़रूरत ?
भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एक और आर्थिक पैकेज की ज़रूरत हैं ?. प्रधानमंत्री से लेकर वित्त मंत्री ने इस तरफ इशारा भी किया है
भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एक और आर्थिक पैकेज की ज़रूरत हैं ?. प्रधानमंत्री से लेकर वित्त मंत्री ने इस तरफ इशारा भी किया है. लेकिन सरकार दुविधा में नज़र आती है क्योंकि कोरोना महामारी कम होने के बजाय तेज़ी से बढ़ रही है और आर्थिक गतिविधियों के दोबारा पटरी पर लौटने में बाधा डाल रही है. कोरोना का ग्राफ भारत में तेजी से बड़ता जा रहा हे. इसके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था पर खासा असर पड़ा हें
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लिंक्डइन (LINKEDIN) पर एक टिप्पणी में कहा है कि सरकार आर्थिक पैकेज देने से इसलिए हिचक रही है क्योंकि वो शायद भविष्य में पैकेज देने के लिए पैसे रख रही है. "भारत में महामारी अभी भी बढ़ रही है. इसलिए ऐसे ख़र्च जिनके लिए आपको फ़ैसले करने पड़ते हैं, विशेष रूप से रेस्त्रां जैसी जगहों पर जाना जहाँ काफ़ी लोगों से संपर्क हो सकता है, तो इससे जुड़ी नौकरियाँ वायरस के ख़त्म होने तक कम रहेंगी. ऐसे में सरकार की ओर से दी जाने वाली राहत महत्वपूर्ण हो जाती है."
वित्त मंत्रालय से प्रभावित थिंक टैंक नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ पब्लिक फ़ाइनेंस एंड पॉलिसी के निदेशक रथिन रॉय कहते हैं, "मैं आरबीआई की मौद्रिक नीति के बयानों से सहमत नहीं हूं, जिसमें दरों में कटौती के बारे में गवर्नर के क़दम भी शामिल हैं." आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने महामारी की शुरुआत के बाद दो चरणों में दरों में 1.15 प्रतिशत की कमी की थी. इससे पहले एक प्रतिशत से अधिक की कटौती हो चुकी थी.
पहले वाले पैकेज से क्यों नहीं मिली राहत?
आर्थिक मामलों की जानकारी रखने वाले पहले वाले आर्थिक पैकेज और आरबीआई के ब्याज़ दरों में कटौती जैसे क़दम उठाए जाने के बाद से ही कह रहे हैं कि इस पैकेज में खोट है.
बीजेपी सूत्रों ने कहा आर्थिक पैकेज के कारण बाज़ार में लिक्विडिटी बढ़ी .लेकिन अधिकतर लोगों की जेबों में पैसे नहीं डाले गए जिसके कारण मांग में बढ़ोतरी नहीं आ सकी है."
छोटे किसानों और महिलाओं को मनरेगा और दूसरी योजनाओं के ज़रिए रोज़गार दिए गए और नकदी भी. लेकिन माँग बढ़ाने के लिए मध्य वर्ग और अच्छे वेतन प्राप्त करने वालों को आर्थिक मदद नहीं दी गई. बीजेपी सूत्रों के अनुसार इस बात पर सरकार में सहमति है कि दूसरा आर्थिक पैकेज देना चाहिए लेकिन कब इस पर सहमति नहीं बन पा रही है. सूत्रों के मुताबिक़ 'दूसरे बड़े पैकेज पर विचार हो रहा है लेकिन इसे कब लागू किया जाएगा इस पर फ़ैसला नहीं लिया जा सका है.
भारतीय रिजर्व बैंक ने व्यापारियों और आम लोगों को राहत देने के लिए ब्याज़ दर में दो बार कटौती की. लॉकडाउन से पहले भी मांग बढ़ाने के लिए आरबीआई ने दर में कटौती की थी. लेकिन मांग में जारी गिरावट से पता चलता है कि ब्याज़ दरों में कटौती के बावजूद अर्थव्यवस्था की हालत काफ़ी ख़राब है. इसका उदाहरण अप्रैल-जून की तिमाही की आर्थिक स्थिति के नतीजे हैं जिसके दौरान देश का सकल घरेलू उत्पाद 23. 9 प्रतिशत के हिसाब से सिकुड़ गया यानी जीडीपी लगभग एक चौथाई कम हो गयी.