लव जिहाद के खिलाफ अध्यादेश पर हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से 4 जनवरी तक मांगा जवाब
उत्तर प्रदेश सरकार के लव जिहाद से धर्म परिवर्तन को लेकर जारी अध्यादेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब तलब किया है. यूपी सरकार को हाईकोर्ट के सामने चार जनवरी तक अपना विस्तृत जवाब पेश करना होगा.
उत्तर प्रदेश सरकार के लव जिहाद से धर्म परिवर्तन को लेकर जारी अध्यादेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब तलब किया है. यूपी सरकार को हाईकोर्ट के सामने चार जनवरी तक अपना विस्तृत जवाब पेश करना होगा. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को अगले दो दिनों में अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है और सुनवाई की अपनी तारीख 7 जनवरी तय की है.
अध्यादेश पर अंतरिम रोक से कोर्ट का इनकार
चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच ने अध्यादेश पर अंतरिम रोक लगाए जाने से फिलहाल इंकार कर दिया है और कहा है कि अध्यादेश पर कोर्ट अंतिम फैसला ही सुनाएगी. याचिकाओं पर सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने ये बात कही है.
यूपी सरकार ने कहा 'अध्यादेश बेहद जरूरी'
अदालत में सुनवाई के दौरान यूपी सरकार ने भी कई दलीलें पेश कीं और अध्यादेश को ज़रूरी बताया. सरकार की ओर से कहा गया कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस तरह का अध्यादेश बेहद जरूरी हो गया था. अब सरकार को 4 जनवरी तक इस पर अपना विस्तृत जवाब भी पेश करना है.
तीन जनहित याचिकाएं की गईं थी दाखिल
यूपी सरकार के अध्यायदेश के खिलाफ कोर्ट में तीन जनहित याचिकाएं दाखिल की गई हैं. सौरभ कुमार की जनहित याचिका में अध्यादेश को नैतिक व संवैधानिक रूप से अवैध बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है. कहा गया है कि इस कानून के तहत उत्पीड़न पर रोक लगाई जाए.
याचिका में क्या?
याचिका के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 31 अक्तूबर 20 को बयान दिया कि उनकी सरकार लव जेहाद के खिलाफ कानून लाएगी. उनका मानना है कि मुस्लिम द्वारा हिंदू लड़की से शादी धर्म परिवर्तन कराने के षड्यंत्र का हिस्सा है. एकल पीठ ने शादी के लिए धर्म परिवर्तन को अवैध करार दिया, जिसके बाद ये बयान आया. खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले के विपरीत फैसला सुनाया और कहा कि दो बालिग शादी कर सकते हैं. कोर्ट ने धर्म बदलकर शादी करने को गलत नहीं माना है और कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद से जीवन साथी और धर्म चुनने का अधिकार है. याचिका कहती है कि अध्यादेश सलामत अंसारी केस के फैसले के विपरीत है और जीवन के अधिकार अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित किया जाए.