CM Gehlot ने PM मोदी को लिखा पत्र, किसानों के ऋण माफ़ करने की मांग की

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आज  पत्र लिखकर उद्योग पतियों की तरह किसानों के भी कर्ज माफ करने की मांग की है।

CM Gehlot ने PM मोदी  को लिखा पत्र, किसानों के ऋण माफ़ करने की मांग की

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आज  पत्र लिखकर उद्योग पतियों की तरह किसानों के भी कर्ज माफ करने की मांग की है। सीएम ने पत्र में लिखा है कि पिछले दिनों एक आरटीआई के जवाब से पता चला है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कुल 7.95 लाख करोड़ रुपये के उद्योगपतियों के कर्ज राइट ऑफ हुए हैं, लेकिन मोदी सरकार ने किसानों के लिये कोई कर्जमाफी नहीं की है. 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद राजस्थान में 20 लाख 56 हजार से ज्यादा किसानों के कर्ज माफ किए हैं. 


राज्य सरकार ने कुल 14 हजार करोड़ माफ किया है जिसमें 6000 हजार करोड़ बीजेपी सरकार द्वारा घोषित कर्जमाफी के भी शामिल हैं. गहलोत ने कहा कि मुझे प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर  राजस्थान के किसानों की कर्जमाफी के बारे में पुन: ध्यान दिलाना पड़ा क्योंकि 18 दिसंबर को पीएम ने बीजेपी की ओर से आयोजित मध्य प्रदेश के किसान सम्मेलन में कहा कि राजस्थान में किसान कर्जमाफी का इंतजार कर रहे हैं. जबकि ऐसा नहीं है, वास्तविकता दूसरी है. कोई भी किसान ऐसा नहीं है जो राजस्थान सरकार के अधीन आने बाले सहकारी बैंकों से कर्जमाफी का इंतजार कर रहा हो. कर्जमाफी का इंतजार बही बचे हुये किसान कर रहे हैं. जिन्होंने केंद्र सरकार के अधीन राष्ट्रीयकृत एवं वाणिज्यिक बैंकों से कर्ज लिया और केंद्र सरकार ने उनके कर्ज माफ नहीं किये हैं. ये बैंक केन्द्र सरकार के अधीन आते हैं और वह ही इनका कर्ज माफ कर सकते हैं। उन्होंने अपने पत्र UPA सरकार की कर्जमाफी का जिक्र करते हुए लिखा कि उस समय 72 हजार करोड़ के कर्ज देशभर के किसानों के माफ किए गए थे। NDA सरकार आगे आकर इस तरह किसानों की कर्जमाफी क्यों नहीं करती? यह भी विडंबना है कि एक तरफ तो बीजेपी के नेता भ्रम फैलाकर राजस्थान के किसानों को भड़का रहे हैं और दूसरी ओर जो किसान एक महीने से धरने पर बैठे हुये हैं उनसे अभी तक कोई सकारात्मक संवाद नहीं हुआ है. मीडिया के मुताबिक 40 से अधिक किसानों की मौत हो गई है. अगर केंद्र सरकार ये बिल लाने से पहले किसान संगठनों, कृषि विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों से संवाद स्थापित करती तो इस तरह की परिस्थितियां पैदा नहीं होती.