बड़ा खुलासा! मुकेश अंबानी की एक सेकेंड की कमाई मजदूर की 3 साल की कमाई के बराबर-ऑक्सफैम, लॉकडाउन में हर घंटे बनाए 90 करोड़ रुपये

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक ‘इनइक्वालिटी वायरस’ में कहा गया कि मार्च 2020 के बाद की अवधि में भारत में 100 अरबपतियों की संपत्ति में 12,97,822 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है.

बड़ा खुलासा! मुकेश अंबानी की एक सेकेंड की कमाई मजदूर की 3 साल की कमाई के बराबर-ऑक्सफैम, लॉकडाउन में हर घंटे बनाए 90 करोड़ रुपये

 कोविड महामारी के प्रकोप से दुनिया अभी भी पूरी तरह से उबर नहीं पाई है। इस कारोना काल में आर्थिक मोर्चे पर वैश्विक स्तर पर कई विसंगतियां भी देखने को मिलीं। एक ओर जहां दैनिक मजदूरी से गुजारा करने वाली गरीब जनता दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए जद्दोजेहद करती नजर आई, वहीं दूसरी ओर इसके ठीक विपरीत धन-कुबेरों के खजाने और भरते चले गए। इसी दौरान अमेरिका में जहां एक ओर जेफ बेजोस, इलॉन मस्क सरीखे उद्योगपतियों में विश्व के सबसे धनाढ्य व्यक्ति बनने की होड़ लगी रही, वहीं दूसरी ओर लाखों लोग अपनी नौकरी खोने के डर से अनइम्प्लॉयमेंट बीमा क्लेम भरते नजर आए। यह विसंगति केवल वहीं तक सीमित नहीं रही। गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली संस्था ऑक्सफैम (Oxfam) के दावे के मुताबिक कोरोनावायरस महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के दौरान भारतीय अरबपतियों की दौलत 35 प्रतिशत बढ़ गई. 


ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक ‘इनइक्वालिटी वायरस’ में कहा गया कि मार्च 2020 के बाद की अवधि में भारत में 100 अरबपतियों की संपत्ति में 12,97,822 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है. इतनी राशि का वितरण यदि देश के 13.8 करोड़ सबसे गरीब लोगों में किया जाए, तो इनमें से प्रत्येक को 94,045 रुपये दिए जा सकते हैं. 


इस कोरोना काल में जाने-माने उद्योगपति मुकेश अंबानी ने जहां 90 करोड़ रुपये प्रति घंटे के हिसाब से धन कमाया, वहीं 24 प्रतिशत लोगों की एक महीने की आमदनी तीन हजार रुपये से भी कम रही।


रिपोर्ट में आय की असमानता का जिक्र करते हुए बताया गया कि महामारी के दौरान मुकेश अंबानी को एक घंटे में जितनी आमदनी हुई, उतनी कमाई करने में एक अकुशल मजदूर को दस हजार साल लग जाएंगे, या मुकेश अंबानी ने जितनी आय एक सेकेंड में हासिल की, उसे पाने में एक अकुशल मजदूर को तीन साल लगेंगे। रिपोर्ट को विश्व आर्थिक मंच के ‘दावोस संवाद’ के पहले दिन जारी किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी पिछले सौ वर्षों का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट है और इसके चलते 1930 की महामंदी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट पैदा हुआ।


रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस महामारी ने मौजूदा सामाजिक, आर्थिक और लिंग आधारित असमानता की खाई और चौड़ी कर दी है। इस महामारी के गंभीर दुष्परिणामों से धनाढ्य वर्ग बिल्कुल अछूता रहा है, जबकि मध्यमवर्गीय लोग पृथकावास में रहते हुए घर से ऑफिस का काम कर रहे हैं। लेकिन, दुखद पहलू यह है कि देश में अधिकतर लोगों को अपनी नौकरी/आजीविका से हाथ धोना पड़ा।


ऑक्सफैम (Oxfam) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर ने बताया कि इस रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि अन्यायपूर्ण आर्थिक व्यवस्था से कैसे सबसे बड़े आर्थिक संकट के दौरान सबसे धनी लोगों ने बहुत अधिक संपत्ति अर्जित की, जबकि करोड़ों लोग बेहद मुश्किल से गुजर-बसर कर रहे हैं. बेहर ने कहा कि शुरुआत में सोच थी कि महामारी सभी को समान रूप से प्रभावित करेगी, लेकिन लॉक़डाउन होने पर समाज में विषमताएं खुलकर सामने आ गईं.