Corona को लेकर बड़ा दुष्परिणाम आया सामने, 48 फीसदी छात्र पढ़ना-लिखना भूले, सर्वे में हुआ खुलासा
ल चिल्ड्रन ऑनलाइन और ऑफलाइन लर्निंग (स्कूल) सर्वेक्षण-"लॉक्ड आउट: इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन" में यह खुलासा हुआ है
कोरोना महामारी के चलते 17 महीनों यानी 500 दिनों से बंद स्कूलों का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों की शिक्षा पर पड़ा है। समाज के 1362 वंचित वर्ग के घरों के बच्चों के बीच किये गए सर्वे से पता चला है कि ग्रामीण इलाकों में 37 फीसदी तो शहरी इलाकों में 19 फीसदी बच्चे इन दिनों बिलकुल भी पढ़ाई नहीं कर रहे हैं। केवल 8 फीसदी ही ऐसे बच्चे हैं जो ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। स्कूल चिल्ड्रन ऑनलाइन और ऑफलाइन लर्निंग (स्कूल) सर्वेक्षण-"लॉक्ड आउट: इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन" में यह खुलासा हुआ है।
सर्वे में सबसे चौकाने वाली बात ये है कि स्कूल बंद होने के चलते बच्चों की पढ़ाई लिखाई बंद हो गई है। उसका दुष्परिणाम ये हुआ है कि शहरी इलाकों के 48 फीसदी बच्चे ठीक से अक्षर और शब्दों को पढ़ नहीं पा रहे। शहरी इलाकों के 65 फीसदी तो ग्रामीण इलाकों के 70 फीसदी अभिभावकों का कहना है कि लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद होने के बाद उनके बच्चे के पढ़ने लिखने की क्षमता में कमी आई है। इस सर्वे से जुड़े स्वतंत्र शोधकर्ता विपुल पायकरा के मुताबिक “इस सर्वे से पता लगता है कि हालात बेहद गंभीर और चिंताजनक है। ये इस ओर इशारा कर रहा है कि हम सामूहिक निरक्षरता की तरफ जा हैं।”
बच्चों की शिक्षा में आई गिरावट के बाद सर्वे में जिन अभिभावकों से बात की गई इनमें से बड़ी संख्या स्कूलों के खोले जाने के पक्ष में हैं। बड़ी संख्या में इन वंचित घरों के अभिभावक स्कूल के खोले जाने के पक्ष में है। ग्रामीण इलाकों में 97 फीसदी तो शहरी इलाकों में 90 फीसदी अभिभावक चाहते हैं कि स्कूलों को खोल दिया जाये। विपुल पायकरा के मुताबिक “ अगर स्कूल खोलने को लेकर कुछ नहीं किया गया तो बच्चों की शिक्षा के नजरिये से ये बेहद नुकसानदेह होगा। अलग अलग पारी में बांटकर बच्चों को स्कूल बुलाया जा सकता है। सरकार को इस बारे में सोचना होगा, अगर ये नहीं किया तो बच्चे अनपढ़ रह जायेंगे।”